वृक्क क्रियाओं का नियमन, मूत्रण तथा मूत्र (Regulation, Micturition & Urine)
वृक्क क्रियाओं का नियमन
(Regulation of Kidney Function)
वृक्कों की क्रियाविधि का नियंत्रण एवं नियमन हाइपोथैलेमस के हॉर्मोन, जे जी सेल और कुछ हद तक हृदय द्वारा होता है।
हाइपोथैलेमस द्वारा नियमन
(Regulation of Hypothalamus)
-
शरीर में उपस्थित परासरण ग्राहियों (osmotic receptors) रक्त आयतन या शरीर तरल आयतन और आयनी सांद्रण में बदलाव द्वारा सक्रिय (active) होती है।
-
शरीर से मूत्र द्वारा जल का अत्यधिक ह्रास (डाइयुरेसिस) इन ग्राहियों (receptors) को सक्रिय करता है जिससे हाइपोथैलेमस एंटीडाइयुरेटिक हॉर्मोन (ADH) और न्युरोहाइपोफाइसिस (Posterior pituitary) को वैसोप्रेसिन के स्राव के लिए प्रेरित करता है।
-
ADH नलिका के अंतिम भाग DCT तथा CD में जल के पुनरावशोषण (Reabsorption) को आसान बनता है डाइयुरेसिस को रोकता है।
-
शरीर तरल के आयतन में वृद्धि परासरण ग्राहियों को निष्क्रिय कर देती है और पुनर्भरण (recharge) को पूरा करने के लिए ADH के स्रवण को रोक देती है।
-
ADH वृक्क के कार्यों को रक्त वाहिनियों पर संकुचनी प्रभावों द्वारा भी प्रभावित करता है। इससे रक्त दाब बढ़ जाता है।
-
रक्त दाब बढ़ जाने से ग्लोमेरुलर प्रवाह बढ़ जाता है और इससे ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट बढ़ जाता है।
जे जी सेल द्वारा नियमन
(Regulation of J.G Cells)
-
ग्लोमेरूलर रक्त प्रवाह या GFR में गिरावट से J.G. Cells सक्रिय होकर रेनिन को मुक्त करती है।
-
रेनिन रक्त में उपस्थित एंजीओटेंसिनोजन को एंजीओटेंसिन-1 और एंजीओटेंसिन-2 में बदल देती है।
-
एंजीओटेंसिन-2 एक वेसोकंस्ट्रिक्टर (वाहिका संकीर्णक) है जो ग्लोमेरूलर रक्त दाब तथा GFR बढ़ा देता है।
-
एंजीओटेंसिन-2 एड्रिनल कॉर्टेक्स को एल्डोस्टिरॉन हॉर्मोन स्रवण के लिए प्रेरित करता है।
-
एल्डोस्टिरॉन के कारण DCT में Na+ तथा जल का पुनरावशोषण होता है। इससे भी रक्त दाब तथा GFR में वृद्धि होती है, या जटिल क्रियाविधि रेनिन- एंजीओटेंसिन क्रियाविधि कहलाती है।
अलिंदीय नेटरियूरेटिक कारक
(Atrial Natriuretic factor)
-
यदि रेनिन-एंजीओटेंसिन एल्डोस्टिरॉन सिस्टम हाइपर होता है तो रक्त दाब बढ़ जाता है जो हृदय के अलिंद की दिवार में ANF (Atrial Natriuretic factor) स्रावित करने के लिए उद्दीपण पैदा करता है।
-
जिससे हृदय के अलिंदों में अधिक रक्त के बहाव से ANF स्रावित होता है।
-
ANF से रक्त वाहिकाओं का विस्फारण (Vasodilation) होता है जिससे रक्तदाब (Blood pressure) कम हो जाता है।
मूत्रण
(Micturition)
-
वृक्क द्वारा निर्मित मूत्र अंत में मूत्राशय (Urinary bladder) में जाता है और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) द्वारा ऐच्छिक संकेत दिए जाने तक संग्रहित (Store) रहता है।
-
मूत्राशय में मूत्र भर जाने पर उसके फैलने से यह संकेत उत्पन्न होता है।
-
मूत्राशय भित्ति (Bladder wall) से इन आवेगों (impulses) को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में भेजा जाता है।
-
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मूत्राशय की चिकनी पेशियों (Smooth muscles) के संकुचन तथा मूत्राशयी-अवरोधिनी (Bladder sphincter) के शिथिलन हेतु एक प्रेरक संदेश जाता है, जिससे मूत्र का उत्सर्जन होता है।
-
मूत्र उत्सर्जन की क्रिया मूत्रण प्रतिवर्त (urination reflex) कहलाती है।
मूत्र (Urine)
एक वयस्क मनुष्य प्रतिदिन लगभग 1-1.5 लीटर मूत्र उत्सर्जित करता है।
मूत्र एक विशेष गंध युक्त जलीव तरल है, जो रंग में हल्का पीला तथा थोड़ा अम्लीय होता है।
मूत्र का pH-6 होता है।
प्रतिदिन लगभग 25-30 gm यूरिया का उत्सर्जन होता है।
मूत्र में 95% पानी और 5% नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट होता है।
यूरिया, अमोनिया और क्रिएटिनिन जैसे अपशिष्ट मूत्र में उत्सर्जित होते हैं।