उत्सर्जन में अन्य अंगों की भूमिका तथा वृक्क के विकार
वृक्क के अलावा फेफड़ा, यकृत और त्वचा भी उत्सर्जी अपशिष्टों को बाहर निकालने में मदद करते हैं।
फेफड़ा (Lungs)
हमारे फेफड़ा प्रतिदिन अधिक मात्रा में कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) (लगभग 200 ml/मिनट) और जल की पर्याप्त मात्रा का निष्कासन करते हैं।
यकृत (Liver)
हमारे शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत ‘पित्त (Bile)’ का स्राव करती है जिसमें बिलिरुबिन, बिलीवर्डीन, कोलेस्ट्रॉल, निम्नीकृत स्टीरॉइड हॉर्मोन, विटामिन तथा औषधि आदि होते हैं। इन अधिकांश पदार्थों को अंततः मल के साथ बाहर निकाल दिया जाता है।
त्वचा (Skin)
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त्वचा में उपस्थित स्वेद ग्रंथियाँ (Sweat glands) तथा तैल ग्रंथियाँ (sebaceous glands) भी स्राव द्वारा कुछ पदार्थों का निष्कासन करती है।
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पसीने का मुख्य कार्य वाष्पीकरण द्वारा शरीर सतह को ठंडा रखना है, लेकिन यह कुछ पदार्थों के उत्सर्जन में भी सहायता करता है।
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स्वेद ग्रंथि द्वारा निकलने वाला पसीना एक जलीय द्रव है, जिसमें नमक, कुछ मात्रा में यूरिया, लैक्टिक एसिड आदि होते हैं।
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तैल-ग्रंथि सीबम द्वारा कुछ स्टेरॉल, हाइड्रोकार्बन एवं मोम जैसे पदार्थों का निष्कासन करती है।
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ये स्राव त्वचा को सुरक्षात्मक तैलीय कवच प्रदान करते हैं।
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कुछ नाइट्रोजनी अपशिष्टों का निष्कासन लार द्वारा भी होता है।
वृक्क के विकार
(Disorders of the Excretory system)
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वृक्कों की कुसंक्रिया (Malfunctioning) के फलस्वरूप रक्त में यूरिया एकत्रित हो जाता है, जिसे यूरिमिया कहते हैं जो बहुत हानिकारक होता है।
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ऐसे मरीजों में यूरिया का निष्कासन हीमोडायलिसिस (रक्त अपोहन) द्वारा किया जाता है।
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हीमोडायलिसिस में रोगी की धमनी से रक्त निकालकर उसमें हिपेरिन जैसा कोई थक्कारोधी (anticoagulant) मिलाकर अपोहनकारी इकाई (Dialyzing unit) में भेजा जाता है। जिसे कृत्रिम वृक्क (Artificial kidney) कहते हैं।
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इस इकाई में कुंडलित सेफेलोन नली होती है और यह ऐस द्रव से घिरी रहती है, जिसका संगठन नाइट्रोजनी अवशिष्टों को छोड़कर प्लाज्मा के समान होता है।
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छिद्रयुक्त सेफेलोन झिल्ली से अपोहनी द्रव (dialysis fluid) में अणुओं का आवागमन सांद्र प्रवणता (concentration gradient) के अनुसार होता है।
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अपोहनी द्रव में नाइट्रोजनी अपशिष्ट अनुपस्थित होते हैं, अतः ये पदार्थ बाहर की ओर गमन करते हैं और रक्त को शुद्ध करते हैं।
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शुद्ध रक्त में हिपेरिन विरोधी डालकर, उसे रोगी की शिराओं द्वारा पुनः शरीर में भेज दिया जाता है।
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वृक्क की क्रियाहीनता को दूर करने का अंतिम उपाय वृक्क प्रत्यारोपण (transplant) है।
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प्रत्यारोपण में निकट संबंधी दाता के क्रियाशील वृक्क का उपयोग किया जाता है, जिससे प्राप्तकर्ता का प्रतिरक्षा तंत्र उसे अस्वीकार न करें।
Blood pumpBlood from arm(arterial side)Blood thinneradded to bloodDialysis fluid withtreated waterDialyser (artificial Kidney)Blood back to arm(venous side)Dialysis fluidwaste drain Bubble trap
रीनल केलकलाई
(Renal Calculi)
किडनी में बनी पथरी (Stone) या अघुलनशील क्रिस्टलित लवण के पिंड (Insoluble mass of crystallized salt- oxalates) आदि।
गुच्छ शोथ
(Glomerulonephritis)
किडनी के ग्लोमेरुलर में शोथ की प्रदाह (Inflammation of glomeruli of kidney)
ग्लायकोस्यूरिया (Glycosuria)
यूरिन में ग्लूकोस की उपस्थिति होना।
कीटोनूरिया (Ketonuria)
यूरिन में कीटोन बॉडी की उपस्थिति होना आदि।