प्रतिवर्ती क्रिया, चाप, रिफ्लेक्स के प्रकार तथा ज्ञानइन्द्रियाँ
प्रतिवर्ती क्रिया
(Reflex action)
जब हमारे शरीर का कोई अंग अत्यधिक गर्म, ठंडी, नुकीली वस्तु या जहरीली अथवा डरावने जानवर के सम्पर्क में आता है तो उस अंग को अचानक हटा लिए जाने को अनुभव करना। अनुभव की सम्पूर्ण क्रियाविधि एक अनैच्छिक क्रिया (Involuntary action) है जो की परिधीय तंत्रिकीय उद्दीपन के फलस्वरूप केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) द्वारा नियंत्रित होता है, जिसे प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) कहते हैं। यह प्रतिक्रिया तीव्र तथा अपने-आप होने वाली क्रिया है।
रिफ्लेक्स के प्रकार
(Types of reflex)
Controlling organs के आधार पर रिफ्लेक्स दो प्रकार के होते हैं-
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क्रेनियल रिफ्लेक्स (Cranial reflex)
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स्पाइनल रिफ्लेक्स (Spinal reflex)
क्रेनियल रिफ्लेक्स (Cranial reflex)- इसका नियंत्रण मस्तिष्क द्वारा होता है। यह तीव्र प्रतिक्रिया होता है। जैसे- खाना का स्वाद सूँघकर मुँह में पानी आ जाना एक क्रेनियल रिफ्लेक्स है।
स्पाइनल रिफ्लेक्स (Spinal reflex)- इसका नियंत्रण स्पाइनल कॉर्ड के द्वारा होता है। यह बहुत ही तीव्र प्रतिक्रिया होता है। जैसे- रासायनिक, यांत्रिक, थर्मल उत्तेजना द्वारा शरीर के हिस्से को झट से खींच लेना एक स्पाइनल रिफ्लेक्स है।
एक्सप्रिएंसेस या लर्निंग के आधार पर रिफ्लेक्स दो प्रकार के हैं-
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कंडिशनल रिफ्लेक्स (Conditional reflex)
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अनकंडीशनल रिफ्लेक्स (Unconditional reflex)
कंडिशनल रिफ्लेक्स (Conditional reflex)- इसका मेमोरी (Memory) बना होता है। जैसे- खाना के बारे में सोचकर मुँह में पानी आना, साइकिलिंग करना, तैरना आदि कंडिशनल रिफ्लेक्स होता है।
अनकंडीशनल रिफ्लेक्स (Unconditional reflex)- खाने के साथ लार आना, शरीर के भाग को खींचना, छींकना, हिचकी करना, उल्टी करना, खाँसना आदि मेडुला ओब्लोंगटा का अनकंडीशनल रिफ्लेक्स है।
प्रतिवर्ती चाप
(Reflex arc)
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प्रतिवर्ती क्रिया पथ अभिवाही न्यूरॉन (receptor) और अपवाही न्यूरॉन (effector), जो निश्चित क्रम में लगे होते हैं, से बना होता है।
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अभिवाही न्यूरॉन संवेदी अंगों से संकेत ग्रहण करके पृष्ठ तंत्रिकीय मूल के द्वारा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में आवेगों (Impulse) का संप्रेषण करता है।
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प्रभावक न्यूरॉन तब संकेतों को प्रभावी अंगों तक पहुँचाती है।
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इस प्रकार उद्दीपन एवं प्रतिवर्ती क्रिया मिलकर प्रतिवर्ती चाप का निर्माण करते हैं। जैसे- नीजर्क रिफ्लेक्स।
Aferent PathwayMuscle spindle (receptor)Dorsal root ganglionWhite matterGrey matterMotor neuronInterneuronEferent pathwayMotor endplate(efector)StimulusResponse
इन्द्रिय अंग या ज्ञानइन्द्रियाँ
(Sense organs)
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संवेदी अंग सभी प्रकार की वातावरणीय बदलावों का पता लगाकर संदेशों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को भेजते हैं।
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जहाँ सभी अंतर क्रियाएँ संचालित तथा विश्लेषित की जाती है।
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इसके बाद संदेशों को मस्तिष्क के विभिन्न केंद्रों तक भेजा जाता है।
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इस प्रकार आप वातावरणीय बदलावों को अनुभव करते हैं।
हम वस्तुओं को अपनी नासिका द्वारा सूंघते हैं, जीभ द्वारा स्वाद की पहचान करते हैं, कान द्वारा सुनते हैं तथा आँखों द्वारा देखते हैं।
नासिका/घ्राणांग
(Olfactory receptor)
नासिका में श्लेष्म आवरणयुक्त संवेदनग्राही होते हैं जो गंध का संवेदन करते हैं। इन्हें घ्राणग्राही (olfactory receptor) कहते हैं।
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ये घ्राण उपकला (Olfactory epithelium) से बने होतेहैं जिसमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती है।
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घ्राण उपकला की तंत्रिका कोशिकाएँ बाह्य वातावरण से सीधे एक जोड़ी सेम के आकार के अंग में विस्तारित होते हैं, जिसे घ्राण बल्ब (olfactory bulb) कहते हैं।
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घ्राण बल्ब मस्तिष्क के पदाधार तंत्र (substrate system) का विस्तारण हैं।
जीभ/रसग्राही
(Gustatory receptor)
नासिका तथा जीभ दोनों ही विलेय रसायनों की पहचान करते हैं।
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स्वाद (रस संवेदन) तथा गंध के रासायनिक संवेदन क्रियात्मक रूप से समान हैं तथा परस्पर संबंधित हैं।
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जीभ स्वाद कलिकाओं (taste buds) द्वारा स्वाद की पहचान करती है।
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स्वाद कलिकाओं में रसग्राही (Gustatory receptor) होते हैं।
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आहार तथा पेय पदार्थ के प्रत्येक स्वाद के साथ मस्तिष्क स्वाद कलिकाओं से प्राप्त विभेदक निवेश (differential investment) का समाकलन करता है और एक अच्छा अनुभव होता है।
मानव आँख
(Human Eye)
हमारे एक जोड़ी नेत्र खोपड़ी में स्थित अस्थि गर्तिक (bone socket), जिसे नेत्र कोटर (eye socket) कहते हैं, में स्थित होते हैं।
मानव नेत्र की संरचना और कार्य
(Structure & functions of human eye)
वयस्क मनुष्य के नेत्र लगभग गोलाकर संरचना है। नेत्र की दीवारें तीन परतों की बनी होती हैं।
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बाह्य स्तर (Outer layer)
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मध्य स्तर (Middle layer)
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आंतरिक स्तर (Inner layer)
बाह्य स्तर (Outer layer)
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इसे फाइब्रस ट्यूनिका स्तर कहते हैं।
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यह घने संयोजी उत्तकों की बनी होती है।
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यह स्तर फाइब्रस तथा वाहिका रहित (avascular) होता है।
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बाह्य स्तर में स्केलेरा (श्वेत पटल) तथा कॉर्निया आता है।
मध्य स्तर (Middle layer)
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इसमें कोराइड (रक्त पटल) आता है।
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इसे vascular tunica कहते हैं।
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इसमें अनेक रक्त वाहिनियाँ होती हैं।
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यह हल्के नीले, काले या भूरे रंग के दिखती हैं।
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नेत्र गोलक के पिछले 2/3 भाग पर कोराइड की पतली परत होती है तथा अग्र भाग के 1/3 भाग में मोटी होकर पक्ष्माभकाय (Ciliary body) बनाती है।
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पक्ष्माभकाय आगे की ओर निरंतरता बनाये हुए वर्णकयुक्त (Pigmented) और अपारदर्शी संरचना आइरिस बनाती है।
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आइरिस आँख का रंगीन देखने योग्य भाग होता है।
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नेत्र गोलक (eyeball) के भीतर पारदर्शी क्रिस्टलीय लैंस होती है जो की तंतुओं (Fibers) द्वारा सीलियरी बॉडी से जुड़ा रहता है।
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लैंस के सामने आइरिस से घिरा हुआ एक छिद्र होता है जिसे प्यूपिल कहते हैं।
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प्यूपिल के घेरे का नियंत्रण आइरिस के पेशी तंतु (muscle fibers) करते हैं।
आंतरिक स्तर (Inner layer)
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आंतरिक परत रेटिना (दृष्टि पटल) कहलाती है।
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इसे फोटोसेंसरी परत भी कहते हैं।
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यह कोशिकाओं की तीन परतों से बनी होती है-
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आंतरिक स्तर (Inner layer)- गुच्छिका कोशिकाएँ (Ganglionic cells)
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मध्य स्तर (Middle layer)- द्विध्रुवीय कोशिकाएँ (Bipolar cells)
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बाह्य स्तर (Outer layer)- प्रकाशग्राही कोशिकाएँ (Photo-receptor cells)
बाह्य स्तर में दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं-
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शलाका (Rods)
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शंकु (Cones)
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शलाका तथा शंकु में प्रकाश संवेदी (Photoreceptor) प्रोटीन प्रकाशीय वर्णक होता है।
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दिन की रोशनी में देखना और रंग देखना शंकु (Cones) के कार्य हैं तथा स्कोटोपिक दृष्टि शलाका (Rods) का कार्य है।
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शलाकाओं में बैंगनी लाल रंग का प्रोटीन रोडोस्पिन होता है, जिसमें विटामिन-A होता है।
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मानव नेत्र में तीन प्रकार के शंकु होते हैं, जिसमें कुछ विशेष प्रकार का वर्णक होता है, जो लाल, हरे तथा नीले प्रकाश को पहचानने में सक्षम होते हैं।
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विभिन्न प्रकार के शंकुओं और उनके प्रकाश वर्णकों के मेल से अलग-अलग रंगों के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है।
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जब इन शंकुओं को समान मात्रा में उत्तेजित किया जाता है तो सफेद रंग के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है।
शलाका (Rods) | शंकु (Cones) |
इसकी संख्या 100-120 मिलियन होता है। | इसकी संख्या 6 मिलियन होता है। |
यह कम प्रकाश (Dim light) में सक्रिय होते हैं। | यह अधिक प्रकाश (Bright light) में सक्रिय होते हैं। |
इसका इमेज Black & White बनता है, जिसे स्कोटोपिक विजन (Scotopic vision) कहते हैं। | इसका इमेज रंगीन बनता है, जिसे फोटोपिक विजन (Photopic vision) कहते हैं। |
इसकी संवेदनशीलता उच्च होती है। | इसकी संवेदनशीलता कम होती है। |
Resolution power या Visual activity कम होती है। | इसका Resolution power या Visual activity उच्च होती है। |
इसमें रोडोस्पिन पिग्मेंट पाए जाते हैं। | इसमें आयोडोस्पिन पिग्मेंट पाए जाते हैं। |
शलाका एवं शंकु के बीच अंतर
iris (पुतली)cornea (नेत्रपटल)Lens (लैंस)Sclera (श्वेतपटल)Retina (रेटिना)Choroid (रंजित)Fovea (फोविया)Optic nerve (नेत्र तंत्रिका)Suspensory ligament (सेंसरी लिगामेंट)Vitreous chamber (विट्रोस चैम्बर)Vitreous humor (नेत्रकचाभ द्रव)Anterior chamber (अग्र कक्ष)Aqueous humor (जलीय हास्य)StudyNode
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दृक तंत्रिका (optic nerve) नेत्र तथा रेटिना को नेत्र गोलक के मध्य तथा थोड़ी पश्च ध्रुव के ऊपर छोड़ती है तथा रक्तवाहिनी यहॉँ प्रवेश करती है।
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प्रकाश संवेदी कोशिकाएँ उस भाग में नहीं होती है अतः इसे अंधबिंदु (blind spot) कहते हैं।
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अंधबिंदु के पार्श्व (lateral) में आँख के पिछले ध्रुव पर पीला वर्णक बिंदु (Yellow spot) होता ह, जिसे मैक्युला ल्युटिया कहते हैं और जिसके केंद्र में एक गर्त होता है जिसे फोविया कहते हैं।
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फोविया रेटिना का पतला भाग होता है, जहाँ केवल शंकु (Cones) होते हैं।
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यह वह बिन्दु है जहाँ दिखाई देना अधिकतम होती हैं।
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कॉर्निया और लेंस के बीच की दुरी को एकवस् चैम्बर कहते हैं।
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जिसमें पतला जलीय द्रव नेत्रोद (eyesore) होता है।
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लेंस और रेटिना के बीच के रिक्त स्थान को कचाभ द्रव कोष्ठ (Vitreous chamber) कहते हैं और यह पारदर्शी द्रव कचाभ द्रव (Vitreous humor) कहलाता है।
देखने की प्रक्रिया
(Mechanism of Vision)
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दृश्य तरंगदैर्ध्य (visible wavelength) में प्रकाश की किरणों को कॉर्निया व लेंस द्वारा रेटिना पर फोकस करने पर शलाका और शंकु में आवेग (Impulse) उत्पन्न होते हैं।
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प्रकाश ओप्सिन से रेटिनल के अलगाव को प्रेरित करता है, फलस्वरूप ओप्सिन की संरचना में बदलाव आता है तथा यह झिल्ली की पारगम्यता में बदलाव लता है।
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इसके परिणामस्वरूप विभवांतर प्रकाश ग्राही कोशिका में संचरित होती है तथा एक संकेत की उत्पत्ति होती है, जो कि गुच्छिका कोशिकाओं में द्विध्रुवीय कोशिकाओं द्वारा सक्रिय कोशिका विभव उत्पन्न करता है।
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इन सक्रिय विभव के आवेगों का दृक तंत्रिका (optic nerve) द्वारा मस्तिष्क के दृष्टि वल्कुट (visual cortex) क्षेत्र में भेजा जाता है, जहाँ पर तंत्रिकीय आवेगों की विवेचना की जाती है और छवि को पूर्व स्मृति एवं अनुभव के आधार पर पहचाना जाता है।
मानव कर्ण
(Human Ear)
कर्ण दो संवेदी क्रियाएँ करते हैं, सुनना और शरीर का संतुलन बनाना।
शरीरक्रिया विज्ञान की दृष्टि से कर्ण को तीन मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता है-
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बाह्य कर्ण (External Ear)
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मध्य कर्ण (Middle Ear)
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अंतःकर्ण (Internal Ear)
बाह्य कर्ण (External Ear)
बाह्य कर्ण के मुख्यतः दो भाग हैं-
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पिन्ना (Pinna)
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श्रवण गुहा (Auditory canal)
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पिन्ना वायु में उपस्थित तरंगों को एकत्र करता है जो ध्वनि उत्पन्न करती है।
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बाह्य श्रवण गुहा, कर्ण पटह झिल्ली (tympanic membrane) तक भीतर की ओर जाती है।
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पिन्ना तथा मिटस में कुछ महीन बाल और मोम स्रावित करने वाली ग्रंथियाँ होती है।
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कर्ण पटह झिल्ली संयोजी ऊतकों की बनी होती है जिसमें बाहरी ओर त्वचा से तथा अंदर श्लेष्मा झिल्ली का आवरण होता है।
मध्य कर्ण (Middle Ear)
मध्य कर्ण तीन अस्थियों से बना होता है-
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मैलियस (Malleus)
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इन्कस (Incus)
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स्टेपीज (Stapes)
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ये अस्थिकाओं एक-दूसरे से श्रृंखला के रु में जुड़ी रहती है।
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मैलियस कर्ण पटह झिल्ली से और स्टेपीज कोक्लिया की अंडाकार खिड़की (Oval window of internal ear) से जुड़ी होती है।
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कर्ण अस्थिकाएँ ध्वनि तरंगों को अंतःकर्ण तक पहुंचाने की क्षमता को बढ़ाती है।
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यूस्टेकियन नलिका (Eustachian tube) मध्यकर्ण गुहा को फैरिंक्स से जोड़ती हैं।
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यूस्टेकियन नलिका कर्ण पटह (tympanum) के दोनों ओर दाब को समान रखती है।
अंतःकर्ण (Internal Ear)
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द्रव से भरा अंतःकर्ण लबरीन्थ कहलाता है, जो अस्थिल लबरीन्थ (Bony labyrinth) और झिल्लीनुमा लबरीन्थ (membranous labyrinth) होता है।
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Bony labyrinth वाहिकाओं की एक श्रृंखला होती है।
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इन वाहिकाओं के भीतर झिल्ली नुमा लबरीन्थ होता है, जो परिलसिका द्रव (Perilymph) से घिरा रहता है, लेकिन झिल्लीनुमा लबरीन्थ एन्डोलिम्फ (Endolymph) नामक द्रव से भरा रहता है।
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लबरीन्थ के घुमावदार भाग को कोक्लिया कहते हैं।
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कोक्लिया को दो झिल्लियों द्वारा तीन कक्षों में विभक्त किया जाता है।
SemicircularcanalsUtricleSacculeEndolymphaticductCochlea